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मीठे-मीठे बड़े-बड़े बेर

सेब और बेर जैसे मीठे नए बड़े-बड़े बेर के फल की मांग इंदौर, अहमदाबाद, वडोदरा, मुंबई समेत बड़े शहरों में बढ़ रही है। बेर के खरीदार अधिकांश निजी कंपनियां है। वे इन्हें विदेशों में निर्यात करती हैं। इसके आकर्षक रूप व स्वाद के कारण स्थानीय बाजारों में इसकी मांग बढ़ रही हैं।  पहले साल में  एक पौधे से 60 से 70 किलो का उत्पादन मिला। बाजार में इसका भाव 45 से 50 रुपए किलो तक
जाता है।

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हिंदी साहित्य में वीरबालकवाद / मनोहर श्याम जोशी

                                09 अगस्त जन्मदिन पर विशेष  वीरबालकवाद क्या होता है? यह प्रश्न आपके उर में विह्वलता भरने लगे उससे पहले यह समझ लें कि वीरबालकवाद वह होता है जो समझदार वीरबालकों द्वारा किया जाता है और समझदार वीरबालक वे होते हैं जो अपने को वीरगति को प्राप्त नहीं होने देते। अब पूछिए कि समझदार वीरबालकों द्वारा क्या किया जाता है? और समझ लीजिए अपने को जमाया और और दूसरों को उखाड़ा जाता है। और हाँ, हर बात का श्रेय स्वयं ले लिया जाता है। तो इस लेख के आरंभ में ही स्वयं वीरबालकवाद का अच्छा नमूना पेश करते हुए मैं 'वीरबालक' और 'वीरबालकवाद' दोनों फिकरे चलाने का श्रेय लेते हुए विषय-निरूपण के नाम पर संस्मरण सुनाऊँगा और आपका ध्यान इस ओर दिलाना चाहूँगा कि सभी वीरबालक विषय-निरूपण के नाम पर संस्मरण अवश्य सुनाते हैं क्योंकि आखिर ऐसा हो क्या हो सकता है जिससे वह व्यक्तिगत रूप से जुड़े हुए न रह हों? तो साहब हुआ यह कि मैं जब साठ के दशक में मुंबई आया तब शुरू में अपने मित्र उमेश माथुर के यहाँ रहा। बंबइया इंडस्ट्री में किस्मत आजमाते हुए संघर्षरत लड़कों के लिए मैंने वीरबालक संबो

केदारनाथ सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि

एक और अत्यंत दुखद सूचना, कवि केदारनाथ सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि। अब स्मृति-शेष भर। एक-एक कर उनका अचानक चले जाना। ठीक दो दिन पहले व्यंग्यकार सुशील सिद्धार्थ। उससे पूर्व कथाकार दूधनाथ सिंह, कवि चंद्रकांत देवताले, मनु शर्मा, धर्मशील चतुर्वेदी, पथनी पटनायक, नीलाभ अश्क, रवींद्र कालिया, वीरेन डंगवाल, कैलाश वाजपेयी, यूआर अनंतमूर्ति, अरुण प्रकाश, राजेन्द्र यादव, इंदिरा गोस्वामी, श्रीलाल शुक्ल, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री, कितने-कितने नाम, भारतीय साहित्य को गहरा आघात। सचमुच 'हिंदी की सबसे ख़ौफ़नाक क्रिया है', नम आंखों का यह सिलसिला।